नयी शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं का स्थान

 किसी भी भाषा के लुप्त होने या उसके संकटग्रस्त श्रेणी में आ जाने के परिणाम बहुत दूरगामी होते हैं। भाषा का एक-एक शब्द महत्त्वपूर्ण होता है। प्रत्येक शब्द अपने पीछे संस्कृति की एक लंबी परंपरा को लेकर चलता है। इसलिए भाषा लुप्त होते ही संस्कृति पर खतरा मंडराने लगता है। संस्कृति और उस भाषा के संचित ज्ञान को बचाने के लिए भाषा के संरक्षण की बहुत आवश्यकता है। भारत की नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में इस बात पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया है कि दुर्भाग्य से भारतीय भाषाओं को समुचित ध्यान और देखभाल नही मिल पायी है, जिसके तहत देश ने विगत 50 वर्षों में 220 भाषाओं को खो दिया है। युनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लुप्तप्रायघोषित कर दिया है। देश में इन समृद्ध भाषाओं/संस्कृति की अभिव्यक्ति को संरक्षित या उन्हें रिकार्ड करने के लिए कोई ठोस नीति अभी तक नहीं थी। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी भारतीय भाषाओं विशेषकर मातृभाषाओं या स्थानीय भाषाओं को प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य शिक्षा का माध्यम और उसके आगे यथासंभव भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने की बात कही गयी है। भारतीय भाषाओं के संरक्षण के लिए यह एक बहुत बड़ा कदम है।  इस कार्य के लिए अनेक अकादमी व संस्थान भी खोले जाने की घोषणा की गयी है।  इन नीति में भारत की सभी भाषाओं के साथ संतुलन बनाने की कोशिश की गयी है । इस नीति में यह भी कहा गया है कि दुनिया भर के विकसित देशों में अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं में शिक्षित होना कोई बाधा नहीं है और इसका भरपूर लाभ उन्हें मिलता है, जबकि भारत में अभी भी यह बहुत मुश्किल कार्य है।

 

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